अध्याय 1 – फ्रांसीसी क्रांति

विषय वस्तु

  1. अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में फ्रांसीसी समाज:
    • समाज का विभाजन (तीन एस्टेट)
    • प्रथम एस्टेट (पादरी वर्ग)
    • द्वितीय एस्टेट (कुलीन वर्ग)
    • तृतीय एस्टेट (सामान्य जन) – इसमें व्यापारी, वकील, किसान, कारीगर, मजदूर आदि शामिल थे।
    • करों का बोझ और विशेषाधिकार।
  2. जीविका का संकट:
    • जनसंख्या वृद्धि और अनाज उत्पादन में कमी।
    • महंगाई और खाद्य पदार्थों की कमी।
    • किसानों और गरीबों की बढ़ती मुश्किलें।
  3. उभरता मध्यवर्ग और विशेषाधिकारों के अंत की कल्पना:
    • मध्यवर्ग का उदय (शिक्षित और सम्पन्न)।
    • दार्शनिकों के विचार – जॉन लॉक, ज्यां जाक रूसो, मॉन्टेस्क्यू।
    • स्वतंत्रता, समानता और समान अवसरों पर आधारित समाज की कल्पना।
  4. क्रांति की शुरुआत:
    • स्टेट्स जनरल का आह्वान।
    • टेनिस कोर्ट की शपथ।
    • बास्तील का पतन (14 जुलाई 1789)।
    • देहाती इलाकों में विद्रोह।
  5. फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र:
    • नेशनल असेंबली द्वारा संविधान का प्रारूप।
    • पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र।
    • राजनीतिक प्रतीकों के मायने।
  6. फ्रांस में राजतंत्र का उन्मूलन और गणतंत्र की स्थापना:
    • लुई सोलहवें का गुप्त समझौता और युद्ध।
    • जैकोबिन क्लब और आतंक का राज।
    • रॉब्सपियर का शासन और उसका पतन।
    • डायरेक्टरी शासित फ्रांस।
  7. क्या महिलाओं के लिए भी क्रांति हुई?
    • क्रांतिकारी गतिविधियों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी।
    • महिलाओं के राजनीतिक क्लब और अखबार।
    • मताधिकार और समान वेतन के लिए संघर्ष।
    • क्रांतिकारी सरकार द्वारा महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए उठाए गए कदम और उनकी सीमाएँ।
  8. दास प्रथा का उन्मूलन:
    • फ्रांसीसी उपनिवेशों में दास व्यापार।
    • दास प्रथा के विरुद्ध आवाजें और नेशनल असेंबली में बहस।
    • जैकोबिन शासन द्वारा दास प्रथा का उन्मूलन (1794)।
    • नेपोलियन द्वारा दास प्रथा का पुनर्स्थापन।
    • अंतिम रूप से दास प्रथा का उन्मूलन (1848)।
  9. क्रांति और रोजाना की जिंदगी:
    • सेंसरशिप की समाप्ति।
    • भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
    • सांस्कृतिक गतिविधियों में बदलाव – गीत, नाटक, जुलूस।
  10. नेपोलियन का उदय और पतन:
    • नेपोलियन बोनापार्ट का सत्ता में आना।
    • आधुनिकीकरण और कानून संहिता।
    • यूरोप पर विजय और उसका अंत (वाटरलू का युद्ध)।
  11. क्रांति की विरासत:
    • स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के विचार।
    • लोकतांत्रिक अधिकारों की नींव।
    • सामंतवाद का अंत।
    • राष्ट्रवाद का उदय।
  1. अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में फ्रांसीसी समाज (French Society in the Late 18th Century):
  • समाज का विभाजन (Social Division): फ्रांसीसी समाज तीन वर्गों या ‘एस्टेट’ (Estates) में विभाजित था:
    • प्रथम एस्टेट (First Estate – पादरी वर्ग – Clergy):
      • चर्च और धार्मिक कार्यों से जुड़े लोग।
      • इन्हें राज्य को दिए जाने वाले करों से छूट प्राप्त थी।
      • किसानों से ‘टाइथ’ (Tithe) नामक धार्मिक कर वसूलते थे, जो कृषि उपज का दसवां हिस्सा होता था।
      • इनके पास विशाल भू-संपत्ति थी।
    • द्वितीय एस्टेट (Second Estate – कुलीन वर्ग – Nobility):
      • जन्म के आधार पर विशेष अधिकार प्राप्त।
      • इन्हें भी राज्य को दिए जाने वाले करों से छूट थी।
      • किसानों से सामंती कर (Feudal Dues) वसूलते थे और विभिन्न प्रकार की सेवाएँ लेते थे।
      • महत्वपूर्ण राजकीय और सैन्य पदों पर इनका नियंत्रण था।
    • तृतीय एस्टेट (Third Estate – सामान्य जन – Commoners):
      • इसमें समाज का सबसे बड़ा और विषम वर्ग शामिल था।
      • बड़े व्यवसायी, व्यापारी, अदालत के कर्मचारी, वकील आदि: ये शिक्षित और अपेक्षाकृत सम्पन्न थे, लेकिन इन्हें राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे।
      • किसान एवं कारीगर: जनसंख्या का अधिकांश भाग इन्हीं का था। किसानों की स्थिति दयनीय थी, वे विभिन्न प्रकार के करों के बोझ तले दबे थे।
      • छोटे किसान, भूमिहीन मजदूर, नौकर: ये समाज के सबसे गरीब तबके थे।
    • करों का बोझ (Tax Burden): राज्य के सभी प्रत्यक्ष कर (जैसे ‘टाइल’ – Taille) और अनेक अप्रत्यक्ष कर (जैसे नमक और तम्बाकू पर लगने वाले कर) केवल तृतीय एस्टेट के लोग चुकाते थे। प्रथम और द्वितीय एस्टेट को करों से लगभग पूरी छूट मिली हुई थी। यह अन्यायपूर्ण व्यवस्था जनता में असंतोष का एक बड़ा कारण थी।
    • विशेषाधिकार (Privileges): प्रथम और द्वितीय एस्टेट को जन्म के आधार पर अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। यह समानता के सिद्धांत के विरुद्ध था और तृतीय एस्टेट के लोगों को यह बहुत खटकता था।
  1. जीविका का संकट (Subsistence Crisis):
  • जनसंख्या वृद्धि: 1715 में फ्रांस की जनसंख्या लगभग 2.3 करोड़ थी, जो 1789 तक बढ़कर 2.8 करोड़ हो गई।
  • अनाज उत्पादन में कमी: जनसंख्या की तुलना में अनाज का उत्पादन उस गति से नहीं बढ़ पा रहा था।
  • महंगाई: अनाज की मांग बढ़ने और उत्पादन कम होने से खाद्य पदार्थों, खासकर पावरोटी (जो आम लोगों के भोजन का मुख्य हिस्सा थी) की कीमतें तेजी से बढ़ीं।
  • स्थिर मजदूरी: मजदूरों की मजदूरी महंगाई की दर से नहीं बढ़ी, जिससे अमीर-गरीब की खाई और चौड़ी हो गई।
  • प्राकृतिक आपदाएँ: सूखे या ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाओं से फसलें चौपट हो जाती थीं, जिससे स्थिति और भी भयावह हो जाती थी।
  • परिणाम: आम लोगों के लिए अपनी जीविका चलाना कठिन हो गया, जिससे व्यापक असंतोष फैला। इसे ही ‘जीविका का संकट’ कहा गया।
  1. उभरता मध्यवर्ग और विशेषाधिकारों के अंत की कल्पना (The Rise of the Middle Class and the End of Privileges):
  • मध्यवर्ग का उदय (Rise of the Middle Class): अठारहवीं सदी में तृतीय एस्टेट के भीतर एक नए सामाजिक समूह का उदय हुआ, जिसे ‘मध्यवर्ग’ कहा गया।
    • इसमें सौदागर, निर्माता (जैसे ऊनी और रेशमी वस्त्रों के), वकील, प्रशासनिक अधिकारी जैसे शिक्षित और पेशेवर लोग शामिल थे।
    • इन्होंने समुद्री व्यापार और ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों के उत्पादन के बल पर संपत्ति अर्जित की थी।
    • ये शिक्षित थे और नए विचारों के संपर्क में थे।
  • विशेषाधिकारों का विरोध: मध्यवर्ग का मानना था कि समाज में किसी भी समूह को जन्म के आधार पर विशेषाधिकार नहीं मिलने चाहिए। व्यक्ति की सामाजिक हैसियत का आधार उसकी योग्यता होनी चाहिए, न कि जन्म।
  • दार्शनिकों के विचार (Ideas of Philosophers): इस दौर के दार्शनिकों और चिंतकों ने इन विचारों को और बल दिया:
    • जॉन लॉक (John Locke): अपनी पुस्तक ‘टू ट्रीटाइजेज ऑफ गवर्नमेंट’ (Two Treatises of Government) में राजा के दैवी और निरंकुश अधिकारों के सिद्धांत का खंडन किया। उन्होंने जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के प्राकृतिक अधिकारों का समर्थन किया।
    • ज्यां जाक रूसो (Jean-Jacques Rousseau): अपनी पुस्तक ‘द सोशल कॉन्ट्रैक्ट’ (The Social Contract) में जनता और उसके प्रतिनिधियों के बीच एक सामाजिक अनुबंध पर आधारित सरकार का विचार प्रस्तुत किया। उन्होंने ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ के लोकतांत्रिक सिद्धांत की वकालत की।
    • मॉन्टेस्क्यू (Montesquieu): अपनी पुस्तक ‘द स्पिरिट ऑफ द लॉज’ (The Spirit of the Laws) में सरकार के अंदर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता विभाजन का सिद्धांत दिया। अमेरिका में इसी मॉडल पर सरकार बनी थी।
  • विचारों का प्रसार: इन दार्शनिकों के विचारों पर कॉफी हाउसों, सैलॉनों और गोष्ठियों में गरमागरम बहसें होती थीं। पुस्तकों और अखबारों के माध्यम से ये विचार आम लोगों तक पहुँचे। जो लोग पढ़-लिख नहीं सकते थे, उन्हें ये विचार पढ़कर सुनाए जाते थे।
  • प्रेरणा: अमेरिका के 13 उपनिवेशों द्वारा ब्रिटेन से स्वयं को स्वतंत्र घोषित करना और वहां बने लोकतांत्रिक अधिकारों की गारंटी ने फ्रांसीसी राजनीतिक चिंतकों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा स्रोत का काम किया।
  1. क्रांति की शुरुआत (The Outbreak of the Revolution):
  • स्टेट्स जनरल का आह्वान (Convening of the Estates-General):
    • फ्रांस का सम्राट लुई सोलहवाँ (Louis XVI) एक निरंकुश शासक था, लेकिन उसकी नीतियां और फिजूलखर्ची के कारण राजकोष खाली हो चुका था।
    • प्राचीन राजतंत्र के तहत, नए कर लगाने के लिए सम्राट को स्टेट्स जनरल (एक प्रकार की प्रतिनिधि सभा) की बैठक बुलानी पड़ती थी।
    • 5 मई 1789 को लुई सोलहवें ने नए करों के प्रस्ताव के अनुमोदन के लिए वर्साय के महल में स्टेट्स जनरल की बैठक बुलाई।
    • पहले और दूसरे एस्टेट ने अपने 300-300 प्रतिनिधि भेजे, जबकि तीसरे एस्टेट के 600 प्रतिनिधि थे।
    • तीसरे एस्टेट का प्रतिनिधित्व अपेक्षाकृत समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग कर रहा था। किसानों, औरतों एवं कारीगरों का सभा में प्रवेश वर्जित था, फिर भी उनकी शिकायतों एवं माँगों को लगभग 40,000 पत्रों के माध्यम से सूचीबद्ध किया गया था।
  • मतदान का विवाद: परंपरा के अनुसार, स्टेट्स जनरल में प्रत्येक एस्टेट को एक वोट देने का अधिकार था। लेकिन तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधियों ने मांग की कि अबकी बार पूरी सभा द्वारा मतदान कराया जाना चाहिए, जिसमें प्रत्येक सदस्य को एक वोट देने का अधिकार हो। यह रूसो के लोकतांत्रिक सिद्धांत पर आधारित था।
  • टेनिस कोर्ट की शपथ (Tennis Court Oath):
    • जब सम्राट ने तीसरे एस्टेट की इस मांग को अस्वीकार कर दिया, तो 20 जून 1789 को तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि वर्साय के एक इंडोर टेनिस कोर्ट में जमा हुए।
    • उन्होंने अपने आप को ‘नेशनल असेंबली’ (National Assembly) घोषित कर दिया और शपथ ली कि जब तक सम्राट की शक्तियों को कम करने वाला और अन्यायपूर्ण विशेषाधिकारों को समाप्त करने वाला संविधान तैयार नहीं कर लिया जाएगा, तब तक असेंबली भंग नहीं होगी।
    • इस नेशनल असेंबली का नेतृत्व मिराब्यो (Mirabeau) और आबे सिए (Abbé Sieyès) जैसे नेताओं ने किया। मिराब्यो कुलीन परिवार से थे लेकिन सामंती विशेषाधिकारों के खिलाफ थे। आबे सिए मूलतः पादरी थे और उन्होंने ‘तीसरा एस्टेट क्या है?’ नामक एक प्रभावशाली प्रचार-पुस्तिका लिखी थी।
  • बास्तील का पतन (Fall of the Bastille – 14 जुलाई 1789):
    • जिस समय नेशनल असेंबली संविधान का मसौदा तैयार करने में व्यस्त थी, पूरा फ्रांस आंदोलित हो रहा था।
    • कड़ाके की ठंड के कारण फसल मारी गई थी और पावरोटी की कीमतें आसमान छू रही थीं। बेकरी मालिक स्थिति का फायदा उठाकर जमाखोरी कर रहे थे।
    • पेरिस में अफवाह फैल गई कि सम्राट ने सेना को शहर में घुसने का आदेश दिया है और वह नागरिकों पर गोलियां चलवाएगा।
    • गुस्साई भीड़ ने हथियारों की तलाश में अनेक सरकारी भवनों में जबरन प्रवेश किया।
    • 14 जुलाई 1789 को, गुस्साई भीड़ ने बास्तील (Bastille) के किले-जेल पर धावा बोल दिया, जो सम्राट की निरंकुश शक्ति का प्रतीक माना जाता था। उन्होंने वहां के कमांडर को मार डाला और कैदियों को रिहा करा लिया (हालांकि केवल सात कैदी थे)। बास्तील के किले को ध्वस्त कर दिया गया और उसके पत्थरों को स्मृति-चिन्ह के तौर पर बेच दिया गया।
    • महत्व: बास्तील का पतन फ्रांसीसी क्रांति की एक युगांतकारी घटना मानी जाती है और 14 जुलाई को फ्रांस में राष्ट्रीय दिवस (बास्तील दिवस) के रूप में मनाया जाता है।
  • देहाती इलाकों में विद्रोह (Revolt in the Countryside):
    • शहरों की तरह देहातों में भी विद्रोह फैल गया। अफवाहें फैलीं कि जागीरों के मालिकों ने लठैतों के गिरोह बुला लिए हैं जो पकी फसलों को तबाह कर देंगे।
    • भयभीत किसानों ने कुदालों और बेलचों से ग्रामीण किलों (जागीरदारों के निवास) पर आक्रमण कर दिए।
    • उन्होंने अन्न भंडारों को लूट लिया और लगान संबंधी दस्तावेजों को जलाकर राख कर दिया।
    • बड़ी संख्या में कुलीन अपनी जागीरें छोड़कर भाग गए, और कई ने तो पड़ोसी देशों में जाकर शरण ली।
  1. फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र (France Becomes a Constitutional Monarchy):
  • नेशनल असेंबली की विजय: अपनी विद्रोही प्रजा की शक्ति का अनुमान करके, लुई सोलहवें ने अंततः नेशनल असेंबली को मान्यता दे दी और यह भी मान लिया कि उसकी सत्ता पर अब से संविधान का अंकुश होगा।
  • 4 अगस्त 1789 का आदेश: इस रात को असेंबली ने करों, कर्तव्यों और बंधनों वाली सामंती व्यवस्था के उन्मूलन का आदेश पारित कर दिया।
    • पादरी वर्ग के लोगों को भी अपने विशेषाधिकारों को छोड़ देने के लिए विवश किया गया।
    • धार्मिक कर ‘टाइथ’ समाप्त कर दिया गया और चर्च के स्वामित्व वाली भूमि जब्त कर ली गई। इस प्रकार सरकार के हाथ लगभग 20 अरब लिव्रे की संपत्ति लगी।
  • संविधान का प्रारूप (Drafting the Constitution): नेशनल असेंबली ने 1791 में संविधान का प्रारूप पूरा कर लिया।
    • उद्देश्य: सम्राट की शक्तियों को सीमित करना और शक्तियों को विभिन्न संस्थाओं – विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका – में विभाजित एवं हस्तांतरित करना।
    • इस प्रकार फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र की नींव पड़ी।
  • नागरिकों का वर्गीकरण: नए संविधान ने नागरिकों को दो श्रेणियों में बाँट दिया:
    • सक्रिय नागरिक (Active Citizens): केवल उन्हीं पुरुषों को मत देने का अधिकार मिला जो 25 वर्ष से अधिक आयु के थे और जो कम से कम तीन दिन की मजदूरी के बराबर कर चुकाते थे। इनकी संख्या लगभग 40 लाख थी (लगभग 2.8 करोड़ की कुल जनसंख्या में से)।
    • निष्क्रिय नागरिक (Passive Citizens): शेष पुरुषों और सभी महिलाओं को मताधिकार से वंचित रखा गया।
  • निर्वाचक और असेंबली सदस्य: निर्वाचक की योग्यता प्राप्त करने तथा असेंबली का सदस्य होने के लिए लोगों का करदाताओं की उच्चतम श्रेणी में होना जरूरी था।
  • पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र (Declaration of the Rights of Man and Citizen):
    • संविधान ‘पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र’ के साथ शुरू हुआ।
    • इसमें जीवन के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार, कानून के समक्ष बराबरी के अधिकार जैसे नैसर्गिक एवं अहरणीय (जिन्हें छीना न जा सके) अधिकारों को स्थापित किया गया।
    • यह राज्य का कर्तव्य माना गया कि वह प्रत्येक नागरिक के इन प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा करे।
  • राजनीतिक प्रतीकों के मायने (Political Symbols): उस समय अधिकांश लोग पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे, इसलिए महत्वपूर्ण विचारों का प्रचार करने के लिए छपे हुए शब्दों के बजाय अक्सर आकृतियों एवं प्रतीकों का प्रयोग किया जाता था। कुछ महत्वपूर्ण प्रतीक थे:
    • टूटी हुई जंजीर: दासों की आजादी का प्रतीक।
    • छड़ों का बंडल: एकता में शक्ति का प्रतीक (एक अकेली छड़ आसानी से तोड़ी जा सकती है, पर पूरा बंडल नहीं)।
    • त्रिभुज के अंदर रोशनी बिखेरती आँख: ज्ञान का प्रतीक, जो अज्ञान के अंधकार को मिटा देगा।
    • राजदंड: शाही सत्ता का प्रतीक।
    • अपनी पूँछ मुँह में लिए साँप: सनातनता (Eternity) का प्रतीक (अंगूठी का कोई ओर-छोर नहीं होता)।
    • लाल फ्राइजियन टोपी: दासों द्वारा स्वतंत्र होने के बाद पहनी जाने वाली टोपी।
    • नीला-सफेद-लाल: फ्रांस के राष्ट्रीय रंग।
    • डैनों वाली स्त्री: कानून का मानवीय रूप।
    • विधि पट (The Law Tablet): कानून सबके लिए समान है और उसकी नजर में सब बराबर हैं।
  1. फ्रांस में राजतंत्र का उन्मूलन और गणतंत्र की स्थापना (France Abolishes Monarchy and Becomes a Republic):
  • लुई सोलहवें का गुप्त समझौता: यद्यपि लुई सोलहवें ने संविधान पर हस्ताक्षर कर दिए थे, परंतु वह प्रशा (Prussia) के राजा से गुप्त वार्ता कर रहा था। फ्रांस की घटनाओं से अन्य पड़ोसी देशों के शासक भी चिंतित थे, इसलिए वे भी फ्रांस में पुनः राजतंत्र स्थापित करने में लुई की सहायता करने की योजना बना रहे थे।
  • युद्ध की घोषणा: इससे पहले कि यह योजना अमल में आती, अप्रैल 1792 में नेशनल असेंबली ने प्रशा एवं ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा का प्रस्ताव पारित कर दिया।
    • हजारों स्वयंसेवी सेना में भर्ती होने लगे। उन्होंने इस युद्ध को यूरोपीय राजाओं एवं कुलीनों के विरुद्ध जनता की जंग के रूप में लिया।
    • उनके होठों पर देशभक्ति के जो तराने थे, उनमें कवि रोजेट द लाइल द्वारा रचित ‘मार्सिले’ (Marseillaise) भी था। यह गीत आज फ्रांस का राष्ट्रगान है।
  • आर्थिक कठिनाइयाँ और राजनीतिक अस्थिरता: क्रांतिकारी युद्धों से जनता को भारी क्षति एवं आर्थिक कठिनाइयाँ झेलनी पड़ीं। पुरुषों के मोर्चे पर चले जाने के बाद, घर-परिवार और रोजी-रोटी की जिम्मेदारी औरतों के कंधों पर आ पड़ी।
    • 1791 के संविधान से सिर्फ अमीरों को ही राजनीतिक अधिकार प्राप्त हुए थे। आम लोग, खासकर गरीब, अभी भी राजनीतिक अधिकारों से वंचित थे और उन्हें लगता था कि क्रांति को आगे बढ़ाने की जरूरत है।
  • जैकोबिन क्लब (Jacobin Clubs):
    • राजनीतिक क्लबों में अड्डे जमाकर लोग सरकारी नीतियों और अपनी कार्य-योजना पर बहस करते थे।
    • इनमें ‘जैकोबिन क्लब’ सबसे सफल था, जिसका नाम पेरिस के भूतपूर्व कॉन्वेंट ऑफ सेंट जैकब के नाम पर पड़ा।
    • जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यतः समाज के कम समृद्ध हिस्से से आते थे – छोटे दुकानदार, कारीगर (जैसे जूता बनाने वाले, पेस्ट्री बनाने वाले, घड़ीसाज, छपाई करने वाले) और नौकर व दिहाड़ी मजदूर।
    • उनका नेता मैक्समिलियन रॉब्सपियर (Maximilien Robespierre) था।
    • जैकोबिनों ने एक अलग तरह की वेशभूषा अपनाई – धारीदार लंबी पतलून (बिना ब्रीचेस वाली, जो कुलीन पहनते थे)। ऐसा उन्होंने खुद को कुलीनों से अलग करने और यह दिखाने के लिए किया कि वे आम लोग हैं। उन्हें ‘सौ कुलॉत’ (sans-culottes) के नाम से जाना गया, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘बिना ब्रीचेस वाले’। वे लाल टोपी भी पहनते थे जो स्वतंत्रता का प्रतीक थी (हालांकि महिलाओं को ऐसा करने की अनुमति नहीं थी)।
  • कम्यून का विद्रोह और नए चुनाव: 1792 की गर्मियों में जैकोबिनों ने खाद्य पदार्थों की महंगाई एवं अभाव से नाराज पेरिसवासियों को लेकर एक विशाल हिंसक विद्रोह की योजना बनाई।
    • 10 अगस्त की सुबह उन्होंने ट्यूलेरिए (Tuileries) के महल पर धावा बोल दिया, राजा के रक्षकों को मार डाला और खुद राजा को कई घंटों तक बंधक बनाए रखा।
    • बाद में असेंबली ने शाही परिवार को जेल में डाल देने का प्रस्ताव पारित किया।
    • नए चुनाव कराए गए। अब 21 वर्ष से अधिक उम्र वाले सभी पुरुषों को (चाहे उनके पास संपत्ति हो या न हो) मत देने का अधिकार दिया गया।
  • कन्वेंशन और गणतंत्र की घोषणा: नवनिर्वाचित असेंबली को ‘कन्वेंशन’ (Convention) का नाम दिया गया।
    • 21 सितंबर 1792 को इसने राजतंत्र का अंत कर दिया और फ्रांस को एक ‘गणतंत्र’ (Republic) घोषित किया।
    • गणतंत्र सरकार का वह रूप है जहाँ सरकार एवं उसके शासक का चुनाव जनता करती है। यह वंशानुगत राजशाही के विपरीत है।
  • लुई सोलहवें को फाँसी: कन्वेंशन ने लुई सोलहवें पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया और उसे मृत्युदंड की सजा सुनाई। 21 जनवरी 1793 को प्लेस डे ला कॉनकॉर्ड (Place de la Concorde) में उसे सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दी गई। रानी मैरी एंटोइनेट (Marie Antoinette) का भी कुछ समय बाद वही हश्र हुआ।
  • आतंक का राज (The Reign of Terror) (1793-1794):
    • रॉब्सपियर के नेतृत्व में जैकोबिन सरकार ने नियंत्रण एवं दंड की सख्त नीति अपनाई।
    • उसके हिसाब से गणतंत्र के जो भी शत्रु थे – कुलीन एवं पादरी, अन्य राजनीतिक दलों के सदस्य, उसकी कार्यशैली से असहमति रखने वाले पार्टी सदस्य – उन सभी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और एक क्रांतिकारी न्यायालय द्वारा उन पर मुकदमा चलाया गया।
    • यदि न्यायालय उन्हें ‘दोषी’ पाता तो उन्हें गिलोटिन (Guillotine) पर चढ़ाकर उनका सिर कलम कर दिया जाता था। गिलोटिन दो खंभों के बीच लटकते आरे वाली मशीन थी, जिस पर रखकर अपराधी का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था। इसका नाम इसके आविष्कारक डॉ. गिलोटिन के नाम पर पड़ा।
    • रॉब्सपियर ने अपनी नीतियों को इतनी सख्ती से लागू किया कि उसके समर्थक भी त्राहि-त्राहि करने लगे।
    • रॉब्सपियर सरकार के कुछ सुधार कार्य:
      • मजदूरी एवं कीमतों की अधिकतम सीमा तय कर दी गई।
      • गोश्त एवं पावरोटी की राशनिंग कर दी गई।
      • किसानों को अपना अनाज शहरों में ले जाकर सरकार द्वारा तय कीमत पर बेचने के लिए बाध्य किया गया।
      • अपेक्षाकृत महँगे सफेद आटे के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई। सभी नागरिकों के लिए साबुत गेहूँ से बनी और बराबरी का प्रतीक मानी जाने वाली ‘समानता की रोटी’ खाना अनिवार्य कर दिया गया।
      • बोलचाल और संबोधन में भी बराबरी का आचार-व्यवहार लागू करने की कोशिश की गई। परंपरागत ‘महाशय’ (Monsieur) एवं ‘महोदया’ (Madame) के स्थान पर अब सभी फ्रांसीसी पुरुषों एवं महिलाओं को ‘सितोयेन’ (Citoyen – नागरिक) एवं ‘सितोयीन’ (Citoyenne – नागरिक) नाम से संबोधित किया जाने लगा।
      • चर्चों को बंद कर दिया गया और उनके भवनों को बैरक या दफ्तर बना दिया गया।
  • रॉब्सपियर का पतन: अंततः जुलाई 1794 में न्यायालय द्वारा उसे दोषी ठहराया गया और गिरफ्तार करके अगले ही दिन उसे गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया। इसी के साथ आतंक के राज का अंत हुआ।
  • डायरेक्टरी शासित फ्रांस (Directory Rules France):
    • जैकोबिन सरकार के पतन के बाद मध्यवर्ग के सम्पन्न तबके के पास सत्ता आ गई।
    • नया संविधान बनाया गया जिसके तहत संपत्तिहीन तबके को मताधिकार से वंचित कर दिया गया।
    • इस संविधान में दो चुनी हुई विधान परिषदों का प्रावधान था। इन परिषदों ने पाँच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका ‘डायरेक्टरी’ (Directory) को नियुक्त किया।
    • यह प्रावधान जैकोबिनों के शासनकाल वाली एक व्यक्ति केंद्रित कार्यपालिका से बचने के लिए किया गया था।
    • लेकिन डायरेक्टरों का झगड़ा अक्सर विधान परिषदों से होता था और तब परिषदें उन्हें बर्खास्त करने की चेष्टा करतीं।
    • डायरेक्टरी की राजनीतिक अस्थिरता ने सैनिक तानाशाह नेपोलियन बोनापार्ट के उदय का मार्ग प्रशस्त किया।
  1. क्या महिलाओं के लिए भी क्रांति हुई? (Did Women Have a Revolution?):
  • क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी: महिलाएँ शुरू से ही फ्रांसीसी समाज में इतने अहम परिवर्तनों को लाने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थीं।
    • उन्होंने जीविका चलाने, बाजारों में सामान बेचने, घरेलू काम करने के अलावा क्रांतिकारी प्रदर्शनों और जुलूसों में भी भाग लिया।
    • उन्होंने बास्तील पर हमले में भी भाग लिया था।
    • अक्टूबर 1789 में पेरिस की महिलाओं ने रोटी की कमी और महंगाई के विरोध में वर्साय की ओर कूच किया था और राजा को पेरिस आने पर मजबूर कर दिया था।
  • महिलाओं के राजनीतिक क्लब और अखबार:
    • तीसरे एस्टेट की अधिकांश महिलाएँ अशिक्षित थीं और उन्हें पुरुषों की तरह समान अवसर प्राप्त नहीं थे।
    • अपनी हितों पर चर्चा करने और आवाज उठाने के लिए महिलाओं ने अपने राजनीतिक क्लब शुरू किए और अखबार निकाले।
    • फ्रांस के विभिन्न नगरों में महिलाओं के लगभग साठ क्लब अस्तित्व में आए। उनमें ‘द सोसाइटी ऑफ रिवोल्यूशनरी एंड रिपब्लिकन विमेन’ (The Society of Revolutionary and Republican Women) सबसे मशहूर था।
  • प्रमुख माँगें:
    • उनकी एक प्रमुख माँग यह थी कि महिलाओं को पुरुषों के समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए, खासकर मताधिकार।
    • वे नेशनल असेंबली में चुने जाने और राजनीतिक पदों पर आसीन होने का अधिकार भी चाहती थीं।
    • महिलाओं का मानना था कि नई सरकार में उनके हितों का प्रतिनिधित्व तभी हो पाएगा जब उन्हें राजनीतिक अधिकार मिलेंगे।
  • क्रांतिकारी सरकार द्वारा उठाए गए कदम और उनकी सीमाएँ:
    • प्रारंभिक वर्षों में क्रांतिकारी सरकार ने महिलाओं के जीवन में सुधार लाने वाले कुछ कानून लागू किए:
      • सरकारी विद्यालयों की स्थापना के साथ ही सभी लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया।
      • अब पिता उन्हें उनकी मर्जी के खिलाफ शादी के लिए बाध्य नहीं कर सकते थे।
      • शादी को स्वैच्छिक अनुबंध माना गया और नागरिक कानूनों के तहत उसका पंजीकरण किया जाने लगा।
      • तलाक को कानूनी रूप दे दिया गया और मर्द-औरत दोनों को ही इसकी अर्जी देने का अधिकार दिया गया।
      • महिलाएँ अब व्यावसायिक प्रशिक्षण ले सकती थीं, कलाकार बन सकती थीं और छोटे-मोटे व्यवसाय चला सकती थीं।
    • सीमाएँ: राजनीतिक अधिकारों के लिए महिलाओं का संघर्ष जारी रहा। आतंक राज के दौरान सरकार ने महिला क्लबों को बंद करने और उनकी राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून लागू किए। कई जानी-मानी महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया गया और कुछ को फाँसी दे दी गई।
  • मताधिकार के लिए लंबा संघर्ष: मताधिकार और समान वेतन के लिए महिलाओं का आंदोलन अगली सदी में भी अनेक देशों में चलता रहा। अंततः फ्रांस में महिलाओं को सन 1946 में मताधिकार हासिल हुआ।
  • ओलम्प दे गूज (Olympe de Gouges): क्रांतिकारी फ्रांस की राजनीतिक रूप से सक्रिय महिलाओं में सबसे महत्वपूर्ण थीं। उन्होंने पुरुषों एवं नागरिकों के अधिकार घोषणापत्र का विरोध किया क्योंकि उसमें महिलाओं को मानवमात्र के मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा गया था। उन्होंने 1791 में ‘महिला एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र’ तैयार किया जिसे महारानी और नेशनल असेंबली के सदस्यों के पास यह माँग करते हुए भेजा कि इस पर कार्रवाई की जाए। 1793 में ओलम्प दे गूज ने महिला क्लबों को जबरदस्ती बंद कर देने के लिए जैकोबिन सरकार की आलोचना की। उन पर कन्वेंशन द्वारा देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया और उन्हें फाँसी दे दी गई।
  1. दास प्रथा का उन्मूलन (The Abolition of Slavery):
  • फ्रांसीसी उपनिवेशों में दास व्यापार: फ्रांसीसी क्रांति के सर्वाधिक क्रांतिकारी सामाजिक सुधारों में से एक था फ्रांसीसी उपनिवेशों से दास प्रथा का उन्मूलन।
    • कैरिबियाई उपनिवेश – मार्टीनिक, ग्वाडेलोप और सैन डोमिंगो – तम्बाकू, नील, चीनी एवं कॉफी जैसी वस्तुओं के महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता थे।
    • यूरोपीय लोग इन दूर देशों में जाकर काम करने के प्रति अनिच्छुक थे। बागानों में श्रम की कमी को यूरोप, अफ्रीका एवं अमेरिका के बीच त्रिकोणीय दास व्यापार द्वारा पूरा किया जाता था।
    • फ्रांसीसी सौदागर बोर्दे (Bordeaux) या नान्ते (Nantes) बंदरगाह से अफ्रीका तट पर जहाज ले जाते थे, जहाँ वे स्थानीय सरदारों से दास खरीदते थे।
    • दासों को दागकर एवं हथकड़ियाँ डालकर अटलांटिक महासागर के पार कैरिबियाई देशों तक तीन माह की लंबी समुद्री यात्रा के लिए जहाजों में ठूँस दिया जाता था। वहाँ उन्हें बागान मालिकों को बेच दिया जाता था।
    • दास श्रम के बल पर ही यूरोपीय बाजारों में चीनी, कॉफी एवं नील की बढ़ती माँग को पूरा करना संभव हुआ। बोर्दे और नान्ते जैसे बंदरगाह फलते-फूलते दास व्यापार के कारण ही समृद्ध नगर बन गए।
  • दास प्रथा के विरुद्ध आवाजें: अठारहवीं सदी में फ्रांस में दास प्रथा की ज्यादा निंदा नहीं हुई। नेशनल असेंबली में लंबी बहस हुई कि व्यक्ति के मूलभूत अधिकार उपनिवेशों में रहने वाली प्रजा सहित समस्त फ्रांसीसी प्रजा को प्रदान किए जाएँ या नहीं।
    • परंतु दास व्यापार पर निर्भर व्यापारियों के विरोध के भय से नेशनल असेंबली ने कोई कानून पारित नहीं किया।
  • जैकोबिन शासन द्वारा उन्मूलन (1794): अंततः 1794 के कन्वेंशन ने फ्रांसीसी उपनिवेशों में सभी दासों की मुक्ति का कानून पारित कर दिया।
    • यह कानून एक छोटी-सी अवधि तक ही लागू रहा।
  • नेपोलियन द्वारा पुनर्स्थापन: दस वर्ष पश्चात्, जब नेपोलियन ने सत्ता संभाली, तो उसने दास प्रथा पुनः शुरू कर दी।
    • बागान मालिकों को अपने आर्थिक हित साधने के लिए अफ्रीकी नीग्रो लोगों को गुलाम बनाने की स्वतंत्रता मिल गई।
  • अंतिम रूप से उन्मूलन (1848): फ्रांसीसी उपनिवेशों से अंतिम रूप से दास प्रथा का उन्मूलन 1848 में किया गया। ‘नीग्रो’ शब्द का प्रयोग अब अपमानजनक माना जाता है, यह अफ्रीकी मूल के लोगों के लिए इस्तेमाल होता था।
  1. क्रांति और रोजाना की जिंदगी (The Revolution and Everyday Life):
  • राजनीति का प्रभाव: क्या राजनीति लोगों के पहनावे, उनकी बोलचाल अथवा उनके द्वारा पढ़ी जाने वाली पुस्तकों को बदल सकती है? 1789 के बाद के वर्षों में फ्रांस के पुरुषों, महिलाओं एवं बच्चों के जीवन में ऐसे अनेक परिवर्तन आए।
  • सेंसरशिप की समाप्ति (Abolition of Censorship):
    • क्रांतिकारी सरकारों ने कानून बनाकर स्वतंत्रता एवं समानता के आदर्शों को रोजाना की जिंदगी में उतारने का प्रयास किया।
    • बास्तील के विध्वंस के बाद 1789 की गर्मियों में जो सबसे महत्वपूर्ण कानून अस्तित्व में आया, वह था सेंसरशिप की समाप्ति।
    • प्राचीन राजतंत्र के अंतर्गत तमाम लिखित सामग्री और सांस्कृतिक गतिविधियों – किताब, अखबार, नाटक – को राजा के सेंसर अधिकारियों द्वारा पास किए जाने के बाद ही प्रकाशित या मंचित किया जा सकता था।
  • भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: अब अधिकारों के घोषणापत्र ने भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नैसर्गिक अधिकार घोषित कर दिया।
    • परिणामस्वरूप, फ्रांस के शहरों में अखबारों, पर्चों, पुस्तकों एवं छपी हुई तस्वीरों की बाढ़ आ गई, जहाँ से वह तेजी से गाँव-देहात तक जा पहुँची।
    • उनमें फ्रांस में घट रही घटनाओं एवं परिवर्तनों का ब्योरा और उन पर टिप्पणी होती थी।
    • प्रेस की स्वतंत्रता का मतलब यह था कि किसी भी घटना पर परस्पर विरोधी विचार भी व्यक्त किए जा सकते थे।
  • सांस्कृतिक गतिविधियों में बदलाव:
    • प्रिंट माध्यम का उपयोग करके एक पक्ष ने दूसरे पक्ष को अपने दृष्टिकोण से सहमत कराने की कोशिश की।
    • नाटक, संगीत और उत्सवी जुलूसों ने असंख्य लोगों को आकर्षित किया।
    • स्वतंत्रता और न्याय के बारे में राजनीतिज्ञों व दार्शनिकों के पांडित्यपूर्ण लेखन को समझने और उससे जुड़ने का यह एक लोकप्रिय तरीका था, क्योंकि किताबों को पढ़ना तो मुट्ठी भर शिक्षितों के लिए ही संभव था।
  1. नेपोलियन का उदय और पतन (The Rise and Fall of Napoleon):
  • नेपोलियन का सत्ता में आना: डायरेक्टरी की राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर नेपोलियन बोनापार्ट (Napoleon Bonaparte) नामक एक युवा और महत्वाकांक्षी सेनापति ने 1799 में डायरेक्टरी को भंग कर दिया और सत्ता पर कब्जा कर लिया। 1804 में उसने स्वयं को फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया।
  • यूरोप पर विजय: उसने पड़ोस के यूरोपीय देशों की विजय यात्रा शुरू की, पुराने राजवंशों को हटाकर नए साम्राज्य बनाए और उनकी बागडोर अपने खानदान के लोगों के हाथ में दे दी।
  • आधुनिकीकरण: नेपोलियन खुद को यूरोप के आधुनिकीकरण का अग्रदूत मानता था।
    • नेपोलियन संहिता (Napoleonic Code): उसने निजी संपत्ति की सुरक्षा के कानून बनाए और दशमलव पद्धति पर आधारित नाप-तौल की एक समान प्रणाली चलाई। यह संहिता फ्रांस के नियंत्रण वाले अन्य क्षेत्रों में भी लागू की गई।
    • शुरू-शुरू में बहुत सारे लोगों को नेपोलियन मुक्तिदाता लगता था और उससे जनता को स्वतंत्रता दिलाने की उम्मीद थी।
  • पतन: पर जल्द ही उसकी सेनाओं को लोग हमलावर मानने लगे।
    • 1812 में रूस पर आक्रमण नेपोलियन के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ।
    • आखिरकार 1815 में वाटरलू (Waterloo) के युद्ध में उसकी हार हुई। उसे बंदी बनाकर सेंट हेलेना द्वीप पर भेज दिया गया, जहाँ 1821 में उसकी मृत्यु हो गई।
  • यूरोप पर प्रभाव: यूरोप के बाकी हिस्सों में मुक्ति और आधुनिक कानूनों को फैलाने वाले उसके क्रांतिकारी उपायों का असर उसकी मृत्यु के काफी समय बाद सामने आया।
  1. क्रांति की विरासत (The Legacy of the Revolution):
  • स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के विचार: फ्रांसीसी क्रांति की सबसे महत्वपूर्ण विरासत स्वतंत्रता और जनवादी अधिकारों के विचार थे। ये विचार उन्नीसवीं सदी में फ्रांस से निकलकर बाकी यूरोप में फैले और इनके कारण वहाँ सामंती व्यवस्था का नाश हुआ।
  • लोकतांत्रिक अधिकारों की नींव: क्रांति ने ‘नागरिक’, ‘गणतंत्र’, ‘राष्ट्र’ और ‘लोकतंत्र’ जैसे शब्दों को लोकप्रिय बनाया।
  • सामंतवाद का अंत: क्रांति ने फ्रांस में सामंतवाद को समाप्त कर दिया और कुलीनों के विशेषाधिकारों का अंत किया।
  • राष्ट्रवाद का उदय: क्रांति ने फ्रांसीसी लोगों में राष्ट्रीयता की एक मजबूत भावना पैदा की, जिसने बाद में यूरोप और दुनिया भर में राष्ट्रवादी आंदोलनों को प्रेरित किया।
  • अन्य देशों पर प्रभाव: औपनिवेशिक समाजों ने संप्रभु राष्ट्र-राज्य की स्थापना के अपने आंदोलनों में दासता से मुक्ति के विचार को नई परिभाषा दी। टीपू सुल्तान और राजा राममोहन राय जैसे भारतीय भी क्रांतिकारी फ्रांस से उपजे विचारों से प्रेरणा लेने वाले दो ठोस उदाहरण थे।

सहायक सामग्री आधारित अतिरिक्त बिंदु (Points from Supporting Material):

  • लुई सोलहवाँ और उसका शासन:
    • बूर्बो राजवंश का था, 20 साल की उम्र में 1774 में गद्दी पर बैठा।
    • उसका विवाह ऑस्ट्रिया की राजकुमारी मेरी एंटोइनेट से हुआ।
    • राज्यारोहण के समय राजकोष खाली था – लंबे युद्धों, वर्साय के विशाल महल और राजदरबार की शानो-शौकत बनाए रखने की फिजूलखर्ची के कारण।
    • अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटेन के खिलाफ अमेरिका की सहायता करने से फ्रांस पर और कर्ज चढ़ गया (पहले से ही 2 अरब लिव्रे का बोझ था, 10 अरब लिव्रे और जुड़ गया)।
    • सरकार से कर्जदाता अब 10 प्रतिशत ब्याज की मांग करने लगे थे, जिससे बजट का बड़ा हिस्सा ब्याजों को चुकाने में चला जाता था।
  • लिव्रे (Livre): फ्रांस की मुद्रा, जिसे 1794 में समाप्त कर दिया गया।
  • समाज की संरचना का अधिक विस्तृत विवरण:
    • लगभग 90 प्रतिशत जनसंख्या किसानों की थी, लेकिन लगभग 60 प्रतिशत जमीन पर कुलीनों, चर्च और तीसरे एस्टेट के अमीरों का अधिकार था।
  • क्रांति-पूर्व फ्रांस में असंतोष के तात्कालिक कारण:
    • अन्यायपूर्ण कर व्यवस्था।
    • खाद्य संकट और बढ़ती कीमतें।
    • मध्यवर्ग की बढ़ती आकांक्षाएँ और राजनीतिक अधिकारों की मांग।
    • दार्शनिकों के प्रगतिशील विचार।
    • लुई सोलहवें की अयोग्यता और निरंकुशता।
  • नेशनल असेंबली के प्रमुख कार्य (संविधान निर्माण के अतिरिक्त):
    • वयस्क मताधिकार (सीमित ही सही) की शुरुआत।
    • प्रशासनिक व्यवस्था का पुनर्गठन (पूरे देश के लिए समान कानून)।
    • आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त और भार तथा नाप की एक समान व्यवस्था लागू।
  • फ्रांस के राष्ट्रगान ‘मार्सिले’ के बारे में: यह पहली बार मार्सिलेस के स्वयंसेवियों ने पेरिस की ओर कूच करते हुए गाया था, इसलिए इसका यह नाम पड़ा।
  • आतंक राज के दौरान सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन:
    • सरकार ने चर्च की संपत्ति जब्त कर ली।
    • समानता को बढ़ावा देने के लिए महँगे सफेद आटे के प्रयोग पर रोक, सभी के लिए ‘समानता की रोटी’ अनिवार्य।
    • परंपरागत अभिवादन (महाशय, महोदया) के स्थान पर ‘नागरिक’ और ‘नागरिका’ का प्रयोग।
  • नेपोलियन की कानून संहिता का महत्व:
    • यह कानून के समक्ष समानता और संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित करती थी।
    • इसने जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए।
    • सामंती व्यवस्था को खत्म किया और किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलाई।
    • शहरों में कारीगरों के श्रेणी-संघों के नियंत्रणों को हटा दिया गया।
    • यातायात और संचार व्यवस्थाओं को सुधारा गया।

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