अध्याय 2: भारत का भौतिक स्वरूप –
परिचय (Introduction)
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- भारत की भौगोलिक विविधता का संक्षिप्त अवलोकन।
- भौतिक स्वरूप के निर्माण के पीछे के कारक।
- मुख्य भौगोलिक वितरण (Major Physiographic Divisions)
- हिमालय पर्वत श्रृंखला (The Himalayan Mountains)
- उत्तरी मैदान (The Northern Plains)
- प्रायद्वीपीय पठार (The Peninsular Plateau)
- भारतीय मरुस्थल (The Indian Desert)
- तटीय मैदान (The Coastal Plains)
- द्वीप समूह (The Islands)
- प्रत्येक भौगोलिक इकाई का विस्तृत वर्णन (Detailed Description of Each Physiographic Unit)
- हिमालय पर्वत श्रृंखला:
- निर्माण और भूवैज्ञानिक संरचना।
- तीन समानांतर श्रृंखलाएँ: महान या आंतरिक हिमालय (हिमाद्रि), निम्न हिमालय या हिमाचल, और शिवालिक।
- क्षेत्रीय विभाजन: पंजाब हिमालय, कुमाऊँ हिमालय, नेपाल हिमालय, और असम हिमालय।
- महत्व: जलवायु पर प्रभाव, नदियों का स्रोत, जैव विविधता, पर्यटन।
- उत्तरी मैदान:
- निर्माण: सिंधु, गंगा, और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लाए गए जलोढ़ निक्षेपों से।
- तीन प्रमुख भाग: पंजाब का मैदान, गंगा का मैदान, और ब्रह्मपुत्र का मैदान।
- आकृतिबंध की भिन्नता के आधार पर विभाजन: भाबर, तराई, बांगर, और खादर।
- महत्व: उपजाऊ मिट्टी, कृषि, घनी आबादी।
- प्रायद्वीपीय पठार:
- निर्माण: पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय तथा रूपांतरित शैलों से बना।
- दो मुख्य भाग: मध्य उच्चभूमि और दक्कन का पठार।
- मध्य उच्चभूमि: मालवा का पठार, बुंदेलखंड, बघेलखंड, छोटानागपुर पठार।
- दक्कन का पठार: पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट।
- महत्व: खनिज संसाधन, काली मिट्टी (कपास की खेती)।
- भारतीय मरुस्थल (थार मरुस्थल):
- स्थिति और विस्तार।
- जलवायु और वनस्पति।
- महत्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ: बरखान (अर्धचंद्राकार बालू के टीले)।
- तटीय मैदान:
- पश्चिमी तटीय मैदान: कोंकण, कन्नड़ मैदान, मालाबार तट।
- पूर्वी तटीय मैदान: उत्तरी सरकार, कोरोमंडल तट।
- महत्व: बंदरगाह, मछली पकड़ना, कृषि (कुछ क्षेत्रों में)।
- द्वीप समूह:
- लक्षद्वीप समूह: अरब सागर में, प्रवाल द्वीपों से निर्मित।
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह: बंगाल की खाड़ी में, निमज्जित पर्वत श्रेणियों के शिखर।
- महत्व: सामरिक महत्व, जैव विविधता, पर्यटन।
- हिमालय पर्वत श्रृंखला:
- भौतिक स्वरूपों का महत्व (Significance of Physiographic Divisions)
- देश की जलवायु, वनस्पति, और मिट्टी को कैसे प्रभावित करते हैं।
- आर्थिक विकास में योगदान (कृषि, खनिज, पर्यटन)।
- सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा।
- निष्कर्ष (Conclusion)
- भारत की भौतिक विशेषताओं की अद्वितीयता और उनका संरक्षण।
विस्तृत नोट्स
- परिचय (Introduction)
- भारत की भौगोलिक विविधता: भारत एक विशाल देश है जिसमें विभिन्न प्रकार की भू-आकृतियाँ पाई जाती हैं। यहाँ ऊँचे-ऊँचे बर्फ से ढके पहाड़ हैं, तो विशाल उपजाऊ मैदान भी हैं। कहीं प्राचीन पठार हैं, तो कहीं रेतीला मरुस्थल। इसके अतिरिक्त, भारत के पास लंबी तटरेखा और कई द्वीप समूह भी हैं। यह विविधता भारत को एक अद्वितीय भौगोलिक पहचान प्रदान करती है।
- भौतिक स्वरूप के निर्माण के पीछे के कारक: भारत के वर्तमान भौतिक स्वरूप का विकास करोड़ों वर्षों में हुआ है। इसके निर्माण में कई भूगर्भिक हलचलों, जैसे प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonics), अपक्षय (Weathering), अपरदन (Erosion), और निक्षेपण (Deposition) जैसी प्रक्रियाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उदाहरण के लिए, हिमालय पर्वत का निर्माण भारतीय प्लेट के यूरेशियन प्लेट से टकराने के कारण हुआ।
- मुख्य भौगोलिक वितरण (Major Physiographic Divisions)
भारत की भौतिक आकृतियों को निम्नलिखित प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:
- हिमालय पर्वत श्रृंखला (The Himalayan Mountains): यह भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित एक नवीन वलित पर्वत श्रृंखला है।
- उत्तरी मैदान (The Northern Plains): यह हिमालय के दक्षिण में स्थित एक विशाल और उपजाऊ मैदान है।
- प्रायद्वीपीय पठार (The Peninsular Plateau): यह उत्तरी मैदान के दक्षिण में स्थित एक प्राचीन भूखंड है जो त्रिभुजाकार आकृति का है।
- भारतीय मरुस्थल (The Indian Desert): यह भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित एक शुष्क क्षेत्र है।
- तटीय मैदान (The Coastal Plains): यह प्रायद्वीपीय पठार के पूर्व और पश्चिम में स्थित संकरे मैदान हैं।
- द्वीप समूह (The Islands): इसमें अरब सागर में स्थित लक्षद्वीप और बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं।
- प्रत्येक भौगोलिक इकाई का विस्तृत वर्णन (Detailed Description of Each Physiographic Unit)
- हिमालय पर्वत श्रृंखला (The Himalayan Mountains):
- निर्माण और भूवैज्ञानिक संरचना: हिमालय भूवैज्ञानिक रूप से युवा और बनावट के दृष्टिकोण से वलित पर्वत श्रृंखला है। इसका निर्माण टेथिस सागर के तलछट के भारतीय-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराव से ऊपर उठने के कारण हुआ। यह पश्चिम-पूर्व दिशा में सिंधु नदी से लेकर ब्रह्मपुत्र नदी तक लगभग 2,400 किलोमीटर की लंबाई में फैली एक चाप का निर्माण करती है। इसकी चौड़ाई कश्मीर में 400 किलोमीटर और अरुणाचल प्रदेश में 150 किलोमीटर है।
- तीन समानांतर श्रृंखलाएँ:
- महान या आंतरिक हिमालय (हिमाद्रि – Himadri): यह सबसे उत्तरी और सबसे ऊँची श्रृंखला है, जिसकी औसत ऊँचाई 6,000 मीटर है। विश्व की सबसे ऊँची चोटियाँ (जैसे माउंट एवरेस्ट, कंचनजंगा) इसी श्रृंखला में स्थित हैं। यह ग्रेनाइट से बनी है और हमेशा बर्फ से ढकी रहती है, जिससे कई हिमानियों (Glaciers) का उद्गम होता है।
- निम्न हिमालय या हिमाचल (Himachal or Lesser Himalaya): यह हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित है। इसकी ऊँचाई 3,700 से 4,500 मीटर के बीच है और चौड़ाई लगभग 50 किलोमीटर है। पीर पंजाल, धौलाधार और महाभारत श्रृंखलाएँ इसी का हिस्सा हैं। यहाँ प्रसिद्ध घाटियाँ जैसे कश्मीर घाटी, कांगड़ा और कुल्लू घाटी स्थित हैं। इसे पहाड़ी नगरों (Hill Stations) के लिए जाना जाता है।
- शिवालिक (Shiwalik): यह हिमालय की सबसे बाहरी और सबसे दक्षिणी श्रृंखला है। इसकी ऊँचाई 900 से 1,100 मीटर और चौड़ाई 10 से 50 किलोमीटर है। यह नदियों द्वारा लाए गए असंपीडित अवसादों से बनी है। हिमाचल और शिवालिक के बीच स्थित लंबवत घाटियों को ‘दून’ कहा जाता है, जैसे देहरादून, कोटलीदून और पाटलीदून।
- क्षेत्रीय विभाजन (पश्चिम से पूर्व की ओर, नदी घाटियों की सीमाओं के आधार पर):
- पंजाब हिमालय (या कश्मीर और हिमाचल हिमालय): सिंधु और सतलुज नदियों के बीच।
- कुमाऊँ हिमालय: सतलुज और काली नदियों के बीच।
- नेपाल हिमालय: काली और तिस्ता नदियों के बीच।
- असम हिमालय: तिस्ता और दिहांग (ब्रह्मपुत्र) नदियों के बीच।
- पूर्वांचल या पूर्वी पहाड़ियाँ: ब्रह्मपुत्र हिमालय की सबसे पूर्वी सीमा बनाती है। दिहांग महाखड्ड (Gorge) के बाद हिमालय दक्षिण की ओर एक तीखा मोड़ बनाते हुए भारत की पूर्वी सीमा के साथ फैल जाता है। इन्हें पूर्वांचल या पूर्वी पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है। ये पहाड़ियाँ उत्तर-पूर्वी राज्यों में फैली हैं तथा अधिकतर समानांतर श्रृंखलाओं एवं घाटियों के रूप में फैली हैं। यहाँ पटकाई, नागा, मिज़ो तथा मणिपुर पहाड़ियाँ शामिल हैं। ये बलुआ पत्थर (जो अवसादी शैल है) से बनी हैं।
- महत्व:
- जलवायु पर प्रभाव: यह मानसूनी पवनों को रोककर वर्षा कराता है और मध्य एशिया से आने वाली ठंडी हवाओं से भारत की रक्षा करता है।
- नदियों का स्रोत: गंगा, यमुना, सिंधु, ब्रह्मपुत्र जैसी सदावाहिनी नदियों का उद्गम स्थल।
- जैव विविधता: विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और जीवों का घर।
- पर्यटन: कई प्रसिद्ध पर्यटन स्थल और तीर्थ स्थान।
- प्राकृतिक संसाधन: वन संपदा, खनिज (सीमित मात्रा में)।
- उत्तरी मैदान (The Northern Plains):
- निर्माण: उत्तरी मैदान का निर्माण तीन प्रमुख नदी प्रणालियों – सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र – तथा इनकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए जलोढ़ निक्षेपों (Alluvial Deposits) से हुआ है। लाखों वर्षों में हिमालय के गिरिपाद में स्थित बहुत बड़े बेसिन (द्रोणी) में जलोढ़ों का निक्षेप हुआ, जिससे इस उपजाऊ मैदान का निर्माण हुआ। यह मैदान लगभग 7 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। यह लगभग 2,400 किलोमीटर लंबा और 240 से 320 किलोमीटर चौड़ा है।
- तीन प्रमुख भाग:
- पंजाब का मैदान: उत्तरी मैदान का पश्चिमी भाग, सिंधु और इसकी सहायक नदियों (झेलम, चिनाब, रावी, व्यास, सतलुज) द्वारा निर्मित। इसका अधिकांश भाग पाकिस्तान में है। दो नदियों के बीच के भाग को ‘दोआब’ कहते हैं।
- गंगा का मैदान: यह घग्घर और तिस्ता नदियों के बीच फैला है। यह उत्तर भारत के राज्यों हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड के कुछ भाग तथा पश्चिम बंगाल में फैला है।
- ब्रह्मपुत्र का मैदान: यह गंगा के मैदान के पूर्व में, विशेषकर असम में स्थित है।
- आकृतिबंध की भिन्नता के आधार पर विभाजन: उत्तरी मैदानों को स्थलाकृति की भिन्नता के आधार पर चार भागों में विभाजित किया जा सकता है:
- भाबर (Bhabar): नदियाँ पर्वतों से नीचे उतरते समय शिवालिक की ढाल पर 8 से 16 किलोमीटर की चौड़ी पट्टी में गुटिका (Pebbles) का निक्षेपण करती हैं। इसे भाबर के नाम से जाना जाता है। सभी सरिताएँ (Streams) इस भाबर पट्टी में विलुप्त हो जाती हैं।
- तराई (Terai): भाबर के दक्षिण में, ये सरिताएँ एवं नदियाँ पुनः निकल आती हैं एवं नम तथा दलदली क्षेत्र का निर्माण करती हैं, जिसे तराई कहा जाता है। यह वन्य प्राणियों से भरा घने जंगलों का क्षेत्र था। अब यहाँ कृषि के लिए भूमि साफ कर दी गई है।
- बांगर (Bangar): उत्तरी मैदान का सबसे विशालतम भाग पुराने जलोढ़ का बना है। वे नदियों के बाढ़ वाले मैदान के ऊपर स्थित हैं तथा वेदिका जैसी आकृति प्रदर्शित करते हैं। इस भाग को बांगर के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र की मृदा में चूनेदार निक्षेप पाए जाते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में ‘कंकड़’ कहा जाता है। यह खादर की तुलना में कम उपजाऊ होता है।
- खादर (Khadar): बाढ़ वाले मैदानों के नए तथा युवा निक्षेपों को खादर कहा जाता है। इनका लगभग प्रत्येक वर्ष पुनर्निर्माण होता है, इसलिए ये बहुत उपजाऊ होते हैं तथा गहन खेती के लिए आदर्श होते हैं।
- महत्व:
- उपजाऊ मिट्टी: जलोढ़ मिट्टी कृषि के लिए अत्यधिक उपजाऊ है। यह भारत का ‘अनाज भंडार’ है।
- कृषि: गेहूं, चावल, गन्ना और अन्य फसलों का प्रमुख उत्पादक क्षेत्र।
- घनी आबादी: समतल भूमि और उपजाऊ मिट्टी के कारण यह क्षेत्र घनी आबादी वाला है।
- समतल भूभाग: परिवहन और संचार साधनों के विकास के लिए अनुकूल।
- प्रायद्वीपीय पठार (The Peninsular Plateau):
- निर्माण: यह एक मेज की आकृति वाला स्थल है जो पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय तथा रूपांतरित शैलों से बना है। यह गोंडवाना भूमि के टूटने एवं अपवाह के कारण बना था तथा यही कारण है कि यह प्राचीनतम भूभाग का एक हिस्सा है। इस पठारी भाग में चौड़ी तथा छिछली घाटियाँ एवं गोलाकार पहाड़ियाँ हैं।
- दो मुख्य भाग: नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो कि मालवा के पठार के अधिकतर भागों पर फैला है, उसे मध्य उच्चभूमि (Central Highlands) के नाम से जाना जाता है। नर्मदा नदी के दक्षिण में एक त्रिभुजाकार भूभाग दक्कन का पठार (Deccan Plateau) कहलाता है।
- मध्य उच्चभूमि:
- विंध्य श्रृंखला दक्षिण में मध्य उच्चभूमि तथा उत्तर-पश्चिम में अरावली से घिरी है।
- पश्चिम में यह धीरे-धीरे राजस्थान के बलुई तथा पथरीले मरुस्थल में मिल जाता है।
- इस क्षेत्र में बहने वाली नदियाँ चंबल, सिंध, बेतवा तथा केन दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की तरफ बहती हैं, इस प्रकार वे इस क्षेत्र के ढाल को दर्शाती हैं।
- मध्य उच्चभूमि पश्चिम में चौड़ी लेकिन पूर्व में संकीर्ण है।
- इस पठार के पूर्वी विस्तार को स्थानीय रूप से बुंदेलखंड तथा बघेलखंड के नाम से जाना जाता है।
- इसके और पूर्व के विस्तार को दामोदर नदी द्वारा अपवाहित छोटानागपुर पठार दर्शाता है। यह खनिज संसाधनों से समृद्ध है।
- दक्कन का पठार:
- यह एक त्रिभुजाकार भूभाग है, जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है।
- इसके उत्तर में चौड़े आधार पर सतपुड़ा की श्रृंखला है, जबकि महादेव, कैमूर की पहाड़ी तथा मैकाल श्रृंखला इसके पूर्वी विस्तार हैं।
- दक्कन का पठार पश्चिम में ऊँचा एवं पूर्व की ओर कम ढाल वाला है।
- पश्चिमी घाट (Western Ghats): दक्कन के पठार के पश्चिमी किनारे पर स्थित। ये पूर्वी घाट की अपेक्षा ऊँचे हैं। इनकी औसत ऊँचाई 900 से 1600 मीटर है। ये सतत हैं तथा इन्हें केवल दर्रों के द्वारा ही पार किया जा सकता है। थाल घाट, भोर घाट और पाल घाट महत्वपूर्ण दर्रे हैं। पश्चिमी घाट को विभिन्न स्थानीय नामों से जाना जाता है। महाराष्ट्र में सह्याद्रि, कर्नाटक और तमिलनाडु में नीलगिरि, केरल में अनामलाई और इलायची (कार्डमम) पहाड़ियाँ। अनाईमुडी (2,695 मीटर) पश्चिमी घाट की सबसे ऊँची चोटी है।
- पूर्वी घाट (Eastern Ghats): दक्कन के पठार के पूर्वी किनारे पर स्थित। ये पश्चिमी घाट की तरह सतत नहीं हैं, बल्कि महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी जैसी नदियों ने इन्हें काट दिया है। इनकी औसत ऊँचाई 600 मीटर है। पूर्वी घाट का सबसे ऊँचा शिखर महेंद्रगिरि (1,501 मीटर) है। पूर्वी घाट के दक्षिण-पश्चिम में शेवराय तथा जावेदी की पहाड़ियाँ स्थित हैं।
- महत्व:
- खनिज संसाधन: लोहा, कोयला, मैंगनीज, बॉक्साइट जैसे खनिजों का भंडार।
- काली मिट्टी (दक्कन ट्रैप): दक्कन के पठार के उत्तर-पश्चिमी भागों में काली मिट्टी पाई जाती है, जो ज्वालामुखी उद्गार से बनी है और कपास की खेती के लिए उपयुक्त है। इसे ‘रेगुर मिट्टी’ भी कहते हैं।
- जलविद्युत: नदियों पर बांध बनाकर जलविद्युत उत्पादन।
- भारतीय मरुस्थल (थार मरुस्थल – The Indian Desert):
- स्थिति और विस्तार: यह अरावली पहाड़ियों के पश्चिम किनारे पर स्थित है। यह बालू के टिब्बों से ढँका एक तरंगित मैदान है। इस क्षेत्र में प्रति वर्ष 150 मिलीमीटर से भी कम वर्षा होती है।
- जलवायु और वनस्पति: यहाँ शुष्क जलवायु और बहुत कम वनस्पति पाई जाती है। केवल वर्षा ऋतु में ही कुछ सरिताएँ दिखती हैं और उसके बाद वे बालू में ही विलीन हो जाती हैं। पर्याप्त जल नहीं मिलने से वे समुद्र तक नहीं पहुँच पाती हैं।
- लूनी (Luni) इस क्षेत्र की सबसे बड़ी नदी है।
- महत्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ: बरखान (Barchans) (अर्धचंद्राकार बालू के टीले) का विस्तार बहुत अधिक क्षेत्र पर होता है, लेकिन लंबवत् टीले भारत-पाकिस्तान सीमा के समीप प्रमुखता से पाए जाते हैं।
- क्षेत्र की चट्टानी संरचना प्रायद्वीपीय पठार का ही विस्तार है, यद्यपि यह शुष्क परिस्थितियों के कारण धरातलीय विशेषताओं में भिन्न है।
- तटीय मैदान (The Coastal Plains):
- प्रायद्वीपीय पठार के किनारों पर संकीर्ण तटीय पट्टियों का विस्तार है। ये पश्चिम में अरब सागर से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत हैं।
- पश्चिमी तटीय मैदान: यह अरब सागर और पश्चिमी घाट के बीच स्थित एक संकरा मैदान है। इसके तीन भाग हैं:
- कोंकण तट (Konkan Coast): उत्तरी भाग (मुंबई से गोवा तक)।
- कन्नड़ मैदान (Kannada Plain): मध्य भाग (गोवा से मंगलुरु तक)।
- मालाबार तट (Malabar Coast): दक्षिणी भाग (मंगलुरु से कन्याकुमारी तक)। इस तट पर लैगून (कयाल) पाए जाते हैं, जैसे केरल का वेम्बनाड झील।
- पूर्वी तटीय मैदान: यह बंगाल की खाड़ी और पूर्वी घाट के बीच स्थित चौड़ा और समतल मैदान है।
- उत्तरी सरकार (Northern Circar): उत्तरी भाग में।
- कोरोमंडल तट (Coromandel Coast): दक्षिणी भाग में।
- महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी जैसी बड़ी नदियाँ इस तट पर विशाल डेल्टा बनाती हैं। चिल्का झील पूर्वी तट पर स्थित एक महत्त्वपूर्ण भू-लक्षण है (भारत में खारे पानी की सबसे बड़ी झील)।
- महत्व:
- बंदरगाह: कई प्राकृतिक बंदरगाह व्यापार के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- मछली पकड़ना: तटीय क्षेत्रों में मछली पकड़ना एक प्रमुख व्यवसाय है।
- कृषि: डेल्टाई क्षेत्रों में चावल जैसी फसलों की खेती।
- नमक उत्पादन: कुछ क्षेत्रों में।
- द्वीप समूह (The Islands):
- भारत में दो प्रमुख द्वीप समूह हैं:
- लक्षद्वीप समूह (Lakshadweep Islands):
- यह केरल के मालाबार तट के पास अरब सागर में स्थित है।
- यह छोटे प्रवाल द्वीपों (Coral Islands) से बना है। पहले इनको लकादीव, मिनिकॉय तथा एमीनदीव के नाम से जाना जाता था। 1973 में इनका नाम लक्षद्वीप रखा गया।
- यह 32 वर्ग किलोमीटर के छोटे से क्षेत्र में फैला है। कावारत्ती द्वीप लक्षद्वीप का प्रशासनिक मुख्यालय है।
- इस द्वीप समूह पर पादप तथा जंतु के बहुत से प्रकार पाए जाते हैं। पिटली द्वीप, जहाँ मनुष्य का निवास नहीं है, वहाँ एक पक्षी अभयारण्य है।
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (Andaman and Nicobar Islands):
- यह बंगाल की खाड़ी में उत्तर से दक्षिण की तरफ फैले द्वीपों की श्रृंखला है।
- ये द्वीप समूह आकार में बड़े, संख्या में अधिक तथा बिखरे हुए हैं।
- यह द्वीप समूह मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया है – उत्तर में अंडमान तथा दक्षिण में निकोबार।
- यह माना जाता है कि ये द्वीप समूह निमज्जित पर्वत श्रेणियों के शिखर हैं (अराकान योमा पर्वत श्रेणी का दक्षिणी विस्तार)।
- ये द्वीप समूह देश की सुरक्षा के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
- इन द्वीप समूहों में पाई जाने वाली जलवायु विषुवतीय है तथा ये घने जंगलों से आच्छादित हैं। यहाँ अत्यधिक जैव विविधता पाई जाती है।
- भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी बैरन द्वीप अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में ही स्थित है।
- महत्व:
- सामरिक महत्व: देश की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण।
- जैव विविधता: अद्वितीय वनस्पतियों और जीवों का घर।
- पर्यटन: सुंदर समुद्र तट और प्रवाल भित्तियाँ पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।
- भौतिक स्वरूपों का महत्व (Significance of Physiographic Divisions)
- जलवायु, वनस्पति और मिट्टी पर प्रभाव:
- हिमालय जलवायु अवरोधक के रूप में कार्य करता है और मानसूनी वर्षा को प्रभावित करता है। यह सदाबहार नदियों का स्रोत भी है।
- उत्तरी मैदान उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी प्रदान करते हैं, जो कृषि के लिए महत्वपूर्ण है।
- प्रायद्वीपीय पठार खनिज संसाधनों से भरपूर है और इसकी काली मिट्टी कपास की खेती के लिए उपयुक्त है।
- तटीय मैदान मछली पकड़ने, बंदरगाहों और कुछ कृषि गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- द्वीप समूह अपनी अद्वितीय जैव विविधता और सामरिक महत्व के लिए जाने जाते हैं।
- आर्थिक विकास में योगदान:
- कृषि: उत्तरी मैदान और तटीय डेल्टा प्रमुख कृषि क्षेत्र हैं।
- खनिज: प्रायद्वीपीय पठार खनिजों का भंडार है, जो उद्योगों के लिए आधार प्रदान करते हैं।
- पर्यटन: हिमालय, तटीय क्षेत्र और द्वीप समूह महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं।
- जलविद्युत: पर्वतीय क्षेत्रों की नदियाँ जलविद्युत उत्पादन की क्षमता रखती हैं।
- सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा: विभिन्न भौतिक स्वरूपों ने विभिन्न जीवन शैलियों और संस्कृतियों के विकास में योगदान दिया है।
- निष्कर्ष (Conclusion)
- भारत की भौतिक विशेषताएँ अत्यधिक विविध और अद्वितीय हैं। प्रत्येक भू-आकृतिक प्रदेश की अपनी विशेषताएं और महत्व हैं।
- ये भौतिक स्वरूप देश के प्राकृतिक संसाधनों, जलवायु, अर्थव्यवस्था और लोगों के जीवन को गहराई से प्रभावित करते हैं।
- इन विविध भौतिक स्वरूपों का संरक्षण और सतत उपयोग देश के समग्र विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह हमारी प्राकृतिक विरासत है जिसे आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है।