अध्याय 2 – धर्मनिरपेक्षता की समझ

अध्याय 2 – धर्मनिरपेक्षता की समझ

 

  1. धर्मनिरपेक्षता क्या है? (What is Secularism?)
  • धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य (State) को धर्म से अलग रखना।
  • यह इस बात पर जोर देता है कि किसी भी देश में, किसी भी एक धर्म को आधिकारिक धर्म के रूप में बढ़ावा नहीं दिया जाएगा।
  • उद्देश्य: सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकार और स्वतंत्रता मिले, और कोई भी धार्मिक समूह किसी दूसरे धार्मिक समूह पर हावी न हो।

 

  1. भारतीय धर्मनिरपेक्षता (Indian Secularism)
  • भारतीय संविधान में यह प्रावधान है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है।
  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता के मुख्य उद्देश्य:
  1. एक धार्मिक समुदाय दूसरे पर हावी हो (One religious community does not dominate another): इसका मतलब है कि कोई भी बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय अल्पसंख्यकों पर अपनी शक्ति का दुरुपयोग न करे।
  2. कुछ लोग दूसरे सदस्यों पर हावी हों (Some members do not dominate other members of the same religious community): एक ही धर्म के अंदर भी, कुछ लोग (जैसे उच्च जाति) दूसरों (जैसे निम्न जाति) पर हावी न हों।

iii. राज्य किसी विशेष धर्म को लागू करे और ही लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता छीने (The State does not enforce any particular religion nor take away the religious freedom of individuals): सरकार किसी विशेष धर्म का समर्थन नहीं करेगी और न ही किसी व्यक्ति को अपनी पसंद का धर्म मानने से रोकेगी।

  • भारतीय राज्य खुद को धर्म से कैसे अलग रखता है? (How does the Indian State separate itself from religion?)
    • तटस्थता (Neutrality): भारतीय राज्य किसी भी धार्मिक समूह का समर्थन या विरोध नहीं करता।
    • दूरी (Distance): भारतीय राज्य धार्मिक मामलों से एक निश्चित दूरी बनाए रखता है।
    • गैरहस्तक्षेप (Non-Interference): यह धार्मिक समूहों के मामलों में अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप नहीं करता है, जब तक कि वे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करें।
    • हस्तक्षेप की रणनीति (Strategy of Intervention): कुछ मामलों में, राज्य धर्म-आधारित बहिष्करण और भेदभाव को समाप्त करने के लिए हस्तक्षेप कर सकता है (जैसे अस्पृश्यता को समाप्त करना)।

 

  1. भारतीय धर्मनिरपेक्षता और पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता में अंतर (Differences between Indian and Western Secularism)
विशेषता भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता
धर्म और राज्य का संबंध राज्य धर्म से सैद्धांतिक दूरी बनाए रखता है, लेकिन कुछ धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है (जैसे अस्पृश्यता को खत्म करने के लिए)। धर्म और राज्य के बीच सख्त अलगाव। राज्य धार्मिक मामलों में बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं करता।
धार्मिक प्रथाओं के प्रति धार्मिक प्रथाओं में सुधार की अनुमति है यदि वे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करें। धार्मिक समूहों को अपनी प्रथाओं को बनाए रखने की पूर्ण स्वतंत्रता, जब तक वे कानून का उल्लंघन न करें।
समानता का जोर धार्मिक समूहों के बीच समानता पर जोर देता है। व्यक्ति और उसके अधिकारों पर अधिक जोर।
सार्वजनिक हस्तक्षेप आवश्यकता पड़ने पर सार्वजनिक धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है। सार्वजनिक मामलों से धर्म को पूरी तरह से अलग रखता है।

 

  • उदाहरण: भारत में, यदि कोई धार्मिक प्रथा किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है (जैसे दलितों को मंदिर में प्रवेश से रोकना), तो राज्य हस्तक्षेप कर सकता है। पश्चिमी देशों में, राज्य आमतौर पर धार्मिक समुदायों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता।

 

  1. धर्मनिरपेक्षता का महत्व (Importance of Secularism)
  • लोकतंत्र के लिए आवश्यक (Essential for Democracy): एक लोकतांत्रिक देश में धर्मनिरपेक्षता महत्वपूर्ण है ताकि सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलें और कोई भी बहुमत समूह अल्पसंख्यकों पर हावी न हो।
  • मौलिक अधिकारों की रक्षा (Protection of Fundamental Rights): यह नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता सहित मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है।
  • शांति और सद्भाव (Peace and Harmony): यह विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच शांति और सद्भाव बनाए रखने में मदद करता है।
  • भेदभाव से मुक्ति (Freedom from Discrimination): यह धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को रोकता है।

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