अध्याय 4 – लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना
- बड़ा होना और लैंगिक भूमिकाएँ (Growing Up and Gender Roles)
- लैंगिक भूमिकाएँ (Gender Roles) वे सामाजिक अपेक्षाएँ और व्यवहार होते हैं जो समाज पुरुषों और महिलाओं के लिए निर्धारित करता है।
- बचपन से ही हमें सिखाया जाता है कि लड़के और लड़कियाँ कैसे व्यवहार करें। यह सीखना हमारे बड़े होने की प्रक्रिया का हिस्सा है।
- उदाहरण:
- समकालीन सामोआ समाज में बड़ा होना: 1920 के दशक में, सामोआ द्वीप समूह में बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। वे बड़े बच्चों से मछली पकड़ना, घर के काम करना सीखते थे। लड़कियों को मछली पकड़ने नहीं जाना होता था, वे बच्चों की देखभाल और बड़े काम सीखती थीं।
- मध्य प्रदेश में 1960 के दशक में बड़ा होना: लड़के और लड़कियाँ अलग-अलग स्कूलों में जाते थे। लड़कों के स्कूल में एक बड़ा खेल का मैदान था, जबकि लड़कियों के स्कूल में एक छोटा, बिना खेल के मैदान वाला आँगन था। लड़के ग्रुप में साइकिल चलाते और खेलते थे, जबकि लड़कियाँ समूह में शांत होकर जाती थीं।
- लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग दुनिया (Different Worlds for Boys and Girls)
- लड़कों और लड़कियों को अक्सर अलग-अलग तरह से पाला जाता है, उन्हें अलग-अलग खिलौने दिए जाते हैं, और उनसे अलग-अलग व्यवहार की उम्मीद की जाती है।
- लड़कों को अक्सर मजबूत और साहसी होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जबकि लड़कियों को विनम्र और देखभाल करने वाला होना सिखाया जाता है।
- यह अंतर हमारे आसपास की दुनिया में हर जगह देखा जा सकता है – घरों में, स्कूलों में, खेल के मैदानों में।
- ‘घरेलू काम’ का मूल्य (Valuing ‘Housework’)
- घरों में किए जाने वाले काम (जैसे खाना बनाना, सफाई करना, बच्चों की देखभाल करना) को अक्सर ‘घरेलू काम’ या ‘घर का काम‘ कहा जाता है।
- आमतौर पर, यह काम महिलाओं द्वारा किया जाता है और इसे अक्सर अदृश्य और अमूल्य (unvalued) माना जाता है।
- समस्या:
- इस काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता।
- इसे शारीरिक रूप से कठिन और समय लेने वाला नहीं माना जाता, जबकि यह वास्तव में ऐसा होता है।
- इसे परिवार की आय में योगदान नहीं माना जाता, इसलिए इसे अक्सर कम करके आंका जाता है।
- उदाहरण: हरप्रीत की माँ का काम (खाना बनाना, सफाई करना, कपड़े धोना) और हरप्रीत के परिवार में निर्मला का काम (घर में काम करने वाली बाई)। निर्मला को अपने काम के लिए भुगतान मिलता है, लेकिन उसे कम मूल्यवान माना जाता है और उसके साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया जाता।
- महिलाओं का काम और समानता (Women’s Work and Equality)
- दुनिया भर में, महिलाओं द्वारा किए जाने वाले घरेलू काम और देखभाल के काम को पुरुषों के काम की तुलना में कम मूल्यवान माना जाता है।
- यह एक गंभीर लैंगिक असमानता (Gender Inequality) है।
- संविधान में समानता: हमारा संविधान कहता है कि पुरुष और महिलाएँ समान हैं।
- सरकार की भूमिका: सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए कि महिलाओं द्वारा किए जाने वाले काम को भी उचित मूल्य मिले और भेदभाव समाप्त हो।
- सरकार के प्रयास (Government Efforts)
- सरकार इस समस्या को पहचानने और हल करने के लिए कई कदम उठा रही है:
- जागरूकता बढ़ाना: लोगों को घरेलू काम के मूल्य के बारे में जागरूक करना।
- भेदभाव को रोकना: कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ भेदभाव को रोकने के लिए कानून बनाना।
- सहायता प्रदान करना: महिलाओं को काम करने में सक्षम बनाने के लिए बालवाड़ी (Anganwadis) या क्रेच (Creches) जैसी सुविधाएँ प्रदान करना।
- 1961 में कानून बना कि यदि किसी कंपनी में 30 से अधिक महिला कर्मचारी हैं, तो उन्हें क्रेच की सुविधा देनी होगी।
- इन कदमों का उद्देश्य महिलाओं के लिए समानता सुनिश्चित करना है, ताकि वे भी घर के बाहर काम कर सकें और सामाजिक-आर्थिक विकास में भाग ले सकें।